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Saturday, November 17, 2012

ब्रह्म-कण

     भारतीय मनीषा का सदैव से उद्घोष रहा है कि इस पृथ्वी का निर्माण ईश्वर ने किया है, जो कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड का नायक है। ऋषि-महर्षियो ने कण-कण में भगवान का वास बताया है। यही बात आज वैज्ञानिक भौतिक रूप से सिद्ध करने लगे हैं। वास्तव में ईश्वरीय सत्ता ही सर्वोपरी है, वही  इस स्रष्टि का स्रष्टा है, कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड का नायक है, आधार है, संचालक है, नियंता और निर्विकार है। उसी की इच्छा से लय-प्रलय होती है।वही सर्वोपरि है। विज्ञान उस परमपिता परमात्मा की उपस्तिथि को स्वीकार करने की द्रष्टि से वैज्ञानिक अविष्कारों के माध्यम से अब कण-कण में ब्रह्म का वास स्वीकार तो करने लगा है। ईश्वरीय संकल्पना अत्यंत विराट है। मनीषियों ने दिव्य-द्रष्टि से उसे जाना और उसे निरुपित किया कि वह अगम-अगोचर, निर्विकार, निराकार है। 

     "गॉड-पार्टिकल" की खोज भारतीय वैदिक मान्यता और भारतीय दर्शन की मान्यताओं की पुष्टि ही कर रही है। स्रष्टि की रचना के सम्बन्ध में वेदों में निरुपित किया गया है कि यह वही स्रष्टि है जो इस स्रष्टि के पहले थी। उसी तरह के सूर्य-चन्द्र, पृथ्वी और सम्पूर्ण स्रष्टि विध्यमान है जिसकी पूर्व में कल्पना की जाती थी।

     वैज्ञानिकों का कार्य 'क्या, क्यों, और कैसे' के माध्यम से किसी कार्य को सम्पादित करना होता है, न कि उसका उदभव करना। यह सम्पूर्ण स्रष्टि ईश्वर की संरचना है, हम इसे पोषित-पल्लवित तो करें, न कि उसकी रचना को विध्वंस के कगार पर ले जायें। भारतीय दर्शन के सभी सिद्धांत 'रोम-रोम' में 'राम' का वास ही नहीं मानते, बल्कि सर्वत्र कण-कण में व्याप्त ब्रह्म को ही मानते हैं। "अहम ब्रह्मास्मि" की इसी वैदिक मान्यता को वैज्ञानिक सिद्ध करने में लगे हैं। यह अच्छा प्रयास है कि उन्होंने "गॉड-पार्टिकल" द्वारा सिद्ध कर लिया है कि "ब्रह्म-कणों" द्वारा ही इस स्रष्टि का निर्माण हुआ है। परमात्मा द्वारा इस स्रष्टि की स्रज्नता को विश्व के सभी धर्म स्वीकारते हैं, पर अब वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों द्वारा "गॉड-पार्टिकल्स" ब्रह्म कणों से स्रष्टि निर्माण की बात स्वीकार की है वह भारतीय दर्शन को ही पुष्ट करती है। 

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