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Monday, November 26, 2012

भाव ही भक्ति है।

    मनुष्य को सत्य की ओर चलना है और यह मोक्ष की साधना है।यह दीक्षा के बिना संभव नहीं है। अगर कोई अँधेरे में चलता है तो उसे एक टार्च जैसे प्रकाश देने वाले यंत्र की जरुरत होती है, अन्यथा वह गहरी खायी में गिर जायेगा। उसी तरह साधना के पथ पर चलने वाले को भी टार्च (दीक्षा) की आवश्यकता होती है अन्यथा उसका अधःपतन हो जाता है। सीखना ज्ञान की साधना है। इस पथ पर चलना अर्थात नियमित साधना, कर्म की साधना है। भक्ति तो मोक्ष साधना का चरम बिंदु है। 
   ज्ञान क्या है? ब्रह्माण्ड का एक-एक कण परमात्मा की अभिव्यक्ति है।यह ज्ञान का सार है। ज्ञान की साधना क्या है? जब कोई साधक यह अनुभव करने लगता है कि प्रत्येक भौतिक विषय परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है, तब वह साधक सिद्धांत के क्षेत्र से व्यवहारिक आचरण के क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है। ब्रह्माण्ड परमात्मा का ही प्रकट रूप है। 
    कर्म साधना क्या है? कर्म साधना की सिद्धि या उपलब्धि क्या है? प्रत्येक भौतिक विषय वस्तु को परमात्मा की अभिव्यक्ति के रूप में सोचते हुए सेवा करना कर्म है, कर्म साधना है। ब्रह्माण्ड परमात्मा का ही प्रकट रूप है, इसकी अनुभूति करना सिद्धि या उपलब्धि कहलाती है। 
 

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